श्री करवीर शक्तिपीठ

करवीर शक्तिपीठ

करवीर शक्तिपीठ, महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। यहाँ माता सती का ‘त्रिनेत्र’ गिरा था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।

पाँच नदियों के संगम-पंचगंगा नदी तट पर स्थित कोल्हापुर प्राचीन मंदिरों की नगरी है। महालक्ष्मी मंदिर यहाँ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंदिर है, जहाँ त्रिशक्तियों की भी मूर्तियाँ हैं। महालक्ष्मी के निज मंदिर के शिरोभाग पर शिवलिंग तथा नंदी का मंदिर है तथा व्यंकटेश, कात्यायिनी और गौरीशंकर भी देवकोष्ठ में हैं। परिसर में अनेक मूर्तियाँ हैं। प्रांगण में मणिकर्णिका कुण्ड है, जिसके किनारे विश्वेश्वर महादेव का मंदिर है। उल्लेख है कि वर्तमान कोल्हापुर ही पुराण प्रसिद्ध करवीर क्षेत्र है। ऐसा उल्लेख देवीगीता में मिलता है-

“कोलापुरे महास्थानं यत्र लक्ष्मीः सदा स्थिता।”

पौराणिक संदर्भ

‘करवीर क्षेत्र माहात्म्य’ तथा ‘लक्ष्मी विजय’ के अनुसार कौलासुर दैत्य को वर प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकटे और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार किया। मृत्युपूर्व उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी स्थित हो गईं, तब इसे ‘करवीर क्षेत्र’ कहा जाने लगा, जो कालांतर में ‘कोल्हापुर’ हो गया। माँ को कोलासुरा मर्दिनी कहा जाने लगा। पद्मपुराणानुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आद्याशक्ति का मुख्य पीठस्थान है।

पौराणिक मान्यता

भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि श्रीधाम वृन्दावन में भगवती देवी के केश गिरे थे, इसका प्रमाण प्राय: सभी शास्त्रों में मिलता ही है। आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्तोत्र आदि कई स्थानों पर उल्लेख है- व्रजे कात्यायनी परा अर्थात वृन्दावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है। वृन्दावन स्थित श्री कात्यायनी पीठ भारतवर्ष के उन अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक अत्यन्त प्राचीन सिद्धपीठ है। देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के बाईसवें अध्याय में उल्लेख किया है-

महालक्ष्मी मंदिर

करवीर में स्थित महालक्ष्मी का यह मंदिर अति प्राचीन है। इसकी वास्तुरचना श्रीयंत्र पर है। यह पाँच शिखरों, तीन मण्डपों से शोभित है। तीन मण्डप हैं- गर्भ गृह मण्डप, मध्य मण्डप, गरुड़ मण्डप। प्रमुख एवं विशाल मध्य मण्डप में बड़े-बड़े ऊँचे, स्वतंत्र 16×128 स्तंभ हैं। हज़ारो मूर्तियाँ शिल्प आकृति में हैं। यहाँ सुबह ‘काकड़ आरती’ से लेकर मध्यरात्रि की शय्या आरती तक अखण्ड रूप से पूजार्चना, शहनाई वादन, भजन कीर्तन, पाठ चलता रहता है।

कोल्हापुर में पुराने राजमहल के पास ख़ज़ानाघर के पीछे महालक्ष्मी का विशाल मंदिर स्थित है, जिसे ‘अम्बाजी मंदिर’ भी कहते हैं। इस मंदिर के घेरे में महालक्ष्मी का निजमंदिर है। मंदिर का प्रधान भाग नीले पत्थरों से निर्मित है। पास ही में पद्म सरोवर, काशी तीर्थ, मणिकर्णिका- तीर्थ, काशी विश्वनाथ मंदिर, जगन्नाथ जी के मंदिर आदि भी हैं। यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ, तंत्र चूड़ामणि के अनुसार, सती के तीनों नेत्रों का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति महिषासुरमर्दिनी तथा भैरव क्रोधीश हैं। यहाँ महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है। मत्स्यपुराण के अनुसार काराष्ट्र देश के बीच में श्री लक्ष्मी निर्मित पाँच कोस का करवीर क्षेत्र है, जिसके दर्शन से ही सारे पाप धुल जाते हैं-

“योजनं दश हे पुत्र काराष्ट्रो देश दुर्धटः।

तन्मद्ये पंचकोशं च काश्याद्यादधिकं मुनि॥

क्षेत्रं वे करवीरारण्यं क्षेत्रं लक्ष्मी विनिर्मितः।

तत्क्षेत्रं हि महत्पुण्यं दर्शनात् पाप नाशनम् ॥”

इसी से इसका माहात्म्य काशी से भी अधिक है-

“वाराणस्याधिकं क्षेत्रं करवीरपुरं महत्।

भुक्ति मुक्तिप्रदं नृणां वाराणस्या यवाधिकम्॥”

प्रतिमा

देवी का श्रीविग्रह हीरा मिश्रित रत्नशिला का स्वयंभू तथा चमकीला है। उसके मध्य स्थित पद्मरागमणि भी स्वयंभू है- ऐसा विशेषज्ञ कहते हैं। प्रतिमा अति प्राचीन होने से घिस गई थी। अतः 1954 में कल्पोक्त विधि से मूर्ति में व्रजलेप-अष्ट वन्धादि संस्कार करने से विग्रह स्पष्ट दिखने लगी। चतुर्भुजी माँ के हाथ में मातुलुंग, गदा, ढाल, पानपात्र तथा मस्तक पर नाग, लिंग, योनि है- ऐसा उल्लेख मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य में है-

“मातुलुंगं गदा खेटं पान पात्रं च विभ्रती।

नागंलिंगं च योनि च विभ्रती नृप मूर्धनि॥”

स्वयंभू मूर्ति में ही सिर पर किरीट उत्कीर्ण है, जिस पर शेषफण की छाया है। 31/2 फुट ऊँची यह प्रतिमा अति सुंदर है। देवी के चरणों के पास सिंह भी विराजमान है।

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