श्री राम जी की आरती

श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भवभय दारुणं ।

नव कंज लोचन कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणं ॥१॥

कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरं ।

पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि, नोमि जनक सुतावरं ॥२॥

भजु दीनबन्धु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकन्दनं ।

रघुनन्द आनन्द कन्द, कोशल चन्द दशरथ नन्दनं ॥३॥

शिर मुकुट कुंडल तिलक, चारु उदारु अङ्ग विभूषणं ।

आजानु भुज शर चाप धर, संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥

इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनं ।

मम् हृदय कंज निवास कुरु, कामादि खलदल गंजनं ॥५॥

मन जाहि राच्यो मिलहि सो, वर सहज सुन्दर सांवरो ।

करुणा निधान सुजान शील, स्नेह जानत रावरो ॥६॥

एहि भांति गौरी असीस सुन, सिय सहित हिय हरषित अली ।

तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि, मुदित मन मन्दिर चली ॥७॥

॥ सोरठा ॥

जानी गौरी अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि ।

मंजुल मंगल मूल वाम, अङ्ग फरकन लगे ॥

रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास

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